अक्सर हम जब शादी, सगाई वगैरह शुभ प्रसंग पर जाने वाले होते है तब शगुन का लिफाफा बनाते है, लेकिन इसमें हम १०१, १५१, २५१ आदि संख्या में ही रुपये रखते है ना की १००, १५०, २५०...|
ऐसा क्यों?
ऐसा इसलिए की हमारी संस्कृति एक वैज्ञानिक और आध्यात्मिक परिप्रेक्ष से जीवन जीना सीखने वाली महानतम संस्कृतिओ में से एक है | शगुन के लिफाफे में एक रुपये का अतिरिक्त सिक्का हम क्यों रखते है उसके कई कारण है, जैसे की…
शुन्य संख्या यानी '०' को अंत का प्रतीक माना जाता है और संख्या एक यानी '१' शुरुआत का प्रतीक है। यह अतिरिक्त रखा जाने वाला एक रूपया जिसको हम शगुन दे रहे है उसके लिए नयी शुरुआत के आशीर्वाद के रूप में दिया जाता है !
१००, २५०, ५०० आदि संख्या सीधे ही आधे में विभाजित हो सकती है लेकिन अतिरिक्त एक रूपया लगाने से बनती १०१, २५१, ५०१ आदि जैसी संख्या पूर्ण तरीके से आधी विभाजित नहीं हो सकती, यह अविभाज्य हैं। इसका मतलब है कि हमारे द्वारा दी गई शुभकामनाएँ और आशीर्वाद अविभाज्य हैं।
शगुन में ऊपर से दिए जाने वाला यह एक रुपया निरंतरता का प्रतीक है। यह बंधन को मजबूत करेगा। इसका सीधा सा मतलब है की जोवन में और भी अच्छे प्रसंग आएंगे और यूँ ही फिर मिलते रहेंगे |
ऐसा माना जाता है की, शगुन में दिया जाने वाला अतिरिक्त एक रूपया धातु का ही होना चाहिए यानि की सिक्का होना चाहिए, ना की नोट, क्यूंकि सिक्का धातु से बना हुआ होता है और चूंकि धातु पृथ्वी से आती है और इसे देवी लक्ष्मीजी का अंश माना जाता है तो यह अतिरिक्त एक रूपया देवी लक्ष्मीजी का आशीर्वाद माना जाता है ।
शगुन देते समय हम कामना करते हैं कि जो धन हम देते हैं वह बढ़े और हमारे प्रियजनों के लिए समृद्धि लाए। जहां शगुन की बड़ी रकम खर्च करने के लिए होती है, वहीं एक रुपया विकास का बीज होता है।
यह ख़ास ज्ञात रहे की, ऐसा माना जाता है की श्राद्ध, तर्पण जैसे कार्य में अतिरिक्त एक रूपया नहीं देना चाहिए, इसका विशेष ध्यान रखना चाहिए |
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